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जितनी मेहनत धान उगाने में नहीं उससे ज्यादा रकम निकालने में

सुबह से किसान पहुंच रहे सहकारी बैंक, शाम तक भुगतान की जद्दोजहद

कोरबा.कोरबा जिले के किसान इन दिनों धान बेचने की राशि के लिए सहकारी बैंक के चक्कर लगा रहे हैं। रोज बैंक के चक्कर लगाने के बाद भी पैसे नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे कई जरूरी काम रुक गए हैं। इधर बैंक की अपनी दलील है। सहकारी बैंक के खातेदार किसान अपने ही पैसे निकालने के लिए सुबह से शाम तक लंबी लाइन में लग रहे हैं। कुछ किसान तो ऐसे भी हैं, 70 किलोमीटर दूर से आकर बैंक से पैसे निकालने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि जितनी मेहनत से उन्होंने खून पसीने से सींचकर अपना धान उगाया, उससे ज्यादा पसीना अब वह समर्थन मूल्य के पैसे बैंक से निकालने के लिए बहा रहे हैं।सहकारी बैंक की कोरबा शाखा में 11 समितियों के लगभग 19 हजार खाते हैं, लेकिन इनकी सुविधा के लिए एक एटीएम भी चालू नहीं किया जा सका है। इन खातेदारों को सुविधा उपलब्ध कराने में प्रबंधन पीछे है। इस कारण हो रही अव्यवस्था से खातेदारों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। किसानों की ओर से बेची गई धान की राशि सहकारी बैंक में ही ट्रांसफर की जा रही है लिहाजा किसानों को इसी बैंक से पैसे निकालने की मजबूरी है। बड़ी संख्या में किसान बैंक पहुंचने पर शाखा के बाहर लंबी कतार लग रही है। किसान जूता, चप्पल, झोला और पत्थर तक रखकर खुद को कतार में बनाए रखते हैं। कई ऐसे किसान हैं, जो सहकारी बैंक के कोरबा शाखा में लेनदेन के लिए लगभग 70 से 80 किलोमीटर दूर से भी पहुचंते हैं। सरकार ने धान का समर्थन मूल्य बढ़ाया, लेकिन जरूरत के समय किसानों के हाथ में यह पैसे उपलब्ध हो जाएं. इसकी व्यवस्था अब तक नहीं की है। जिससे किसान अपने ही पैसे बैंक से निकालने के लिए बेहद परेशान है। 40 किलोमीटर दूर से करतला से पहुंचे किसान ने बताया कि 240 क्विंटल धान बेच चुका हूं. धान बेचकर जो समर्थन मूल्य मिला उसमें से कुछ पैसे मैंने निकाल लिए हैं, लेकिन वह पैसे भी मैंने 12 बार में निकाले हैं। इस समय मुझे डेढ़ लाख रुपए की जरूरत है मैं पिछले कई दिनों से लगातार बैंक जाकर सुबह से शाम तक कतार में लग रहा हूं लेकिन शाम को पैसे खत्म हो जाने की बात कह दी जाती है। इस समय घर बना रहा हूं तो पैसे की जरूरत हैं। दो हफ्ते पहले सीमेंट के दाम 280 रुपए प्रति बोरी थी। अब इसके दाम बढ़ाकर 310 हो गए हैं। लोहे के रॉड के दाम भी बढ़ गए हैं। दाम बढऩे से मुझे ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे लेकिन पैसे नहीं दिए जा रहे हैं। जितनी मेहनत खेत में धान उगाने में नहीं लगी थी। उससे ज्यादा मेहनत बैंक से पैसे निकालने में लग रही है। खेत में तो हम खाना लेकर जाते हैं और शाम तक घर लौट जाते हैं, लेकिन यहां तो सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे धूप में खड़े रहने के बाद भी पैसे नहीं मिल रहे हैं। हम बहुत परेशानी में है। गांव पंडरीपानी से बैंक पहुंचे किसान ने बताया कि वह यहां से 30 किलोमीटर दूर से पहुंचा हूं और तीन दिनों से लगातार बैंक आ रहा है। जिसका प्रमाण भी उसके पास मौजूद है। यह जो पर्ची उसके हाथ में है ये तीन दिन पुरानी है। पैसे निकालने के लिए इसे जमा किया था, लेकिन आज तक पैसे नहीं मिले हैं। उसने आरटीजीएस के लिए कहा था लेकिन वह भी नहीं हुआ है। दिन के 11:15 बजे ही बैंक का गेट बंद कर दिया जा रहा। यह कहां का नियम है ? मजबूरी में यहां खाता संचालित करना पड़ रहा है, क्योंकि हम सरकार को धान बेचते हैं। सारे काम छोडक़र बैंक आना पड़ता है। उसके खाते में 5 लाख रुपये है जिसमें से मुझे 1 लाख निकालना है लेकिन वह राशि मुझे नहीं मिल रही है। किसानों को 20 से 25 हजार रुपए ही एक बार में दिए जा रहे हैं। जरूरत के अनुसार पैसे नहीं मिल रहे हैं, जबकि सुबह से ही आकर लंबी कतार में किसान लग जा रहे हैं।

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