संयुक्त श्रम संगठन कर रहे विरोध कोरबा नई खनन नीतियों के चलते कोयला उद्योग में 100 फीसदी निजीकरण का नया दौर तेज गति से शुरू हो गया है। इस क्रम में कोल इंडिया ने भी तमाम बंद पड़ी खदानों व दिगर नई खदानों को एमडीओ व रेवेन्यू शेयरिंग की नीति के जरिए बहुराष्ट्रीय और निजी कंपनियों को देने जा रही है।” एटक कोल फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीपेश मिश्रा ने कही। उन्होंने आगे कहा कि 2019-20 में सरकार ने कोरोना काल की आड़ लेकर कोयला क्षेत्र में सुधार के नाम पर केंद्र कमर्शियल माइनिंग यह कहते हुए लागू किया गया कि देश में कोयला जरुरतों को पूरा करने में कोल इंडिया सक्षम नहीं है। इसी के चलते कमर्शियल माइनिंग का निर्णय लिया गया है। इससे देश में कोयले का उत्पादन बढ़ेगा और विदेशी कोयला के आयात में भारी कमी आएगी। विदेशी पूंजी भी बचेगी जबकि वास्तविकता वैसी नहीं है। आज भी हर वर्ष विदेशी कोयला का आयात दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। फिलहाल कोल इंडिया ने रिवेन्यू शेयरिंग के जरिये अपनी बंद पड़े खदानों तथा नई खदानों को परिचालन के लिए आगे बढ़ रही है। इसका मतलब कोल इंडिया 100 फीसदी निजीकरण की दिशा में बढ़ रही है, जिसका संयुक्त ट्रेड यूनियन विरोध कर रहे हैं।
कोल इंडिया नहीं कर पाएगी मुकाबला रेवेन्यू शेयरिंग का सबसे आपत्तिजनक पहलू यह है कि जिन खदानों का रेवेन्यू शेयरिंग के तहत परिचालन के लिए विदेशी या निजी कंपनियों को दिया जाएगा। वे कोयला का उत्पादन करने के साथ ही उत्पादित कोयला का रेट भी खुद ही तय करेंगे, जबकि एमडीओ मोड में खनन परिचालन मे कीमतें तय करने वाले अधिकार कोल इंडिया के पास ही रहता है। रेवेन्यू शेयरिंग के तहत जो भी विदेशी या देशी कंपनियां कोयला खनन करेंगे वे उन्नत टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके कम कीमत पर कोयला का उत्पादन करेगी जिसके चलते कोल इंडिया कोयला बाजार में इन कंपनियों का मुकाबला नहीं कर पाएगी और पूरी तरह तबाह हो जाएगी क्योंकि खुले बाजार में कीमतों के जंग मे कोल इंडिया किसी भी परिस्थिति मे निजी व विदेशी कंपनियों से मुकाबला नहीं कर पाएगी और बर्बाद हो जाएगी।